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मैसेजेज के आदान-प्रदान से बढ़ रहा है भय और चिंता
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पॉजीटिव इन्फॉरमेशन मानसिक रूप से सशक्त बनाता है
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ध्यान दें – आपकी हर थॉट वातावरण को प्रभावित कर रही है
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भय और चिंता रिस्क फैक्टर को बढ़ाता है
क्वालिटी ऑफ इन्फॉरमेशन आज भी क्वेश्चन मार्क है
आज हम ऐसे युग में जी रहे हैं जहां इन्फॉरमेशन की कोई कमी नहीं है। आज जब सभी लोग घरों पर हैं। न्यूज चैनलों के माध्यम से चौबीसों घंटे अपडेटस दिए जा रहे हैं। आज हर जगह यही सब कुछ देखने को मिल रहा है। जब इतनी सारी इनपुट हमारे अंदर जा रहा है तो हम कुछ अलग कैसे सोच सकते हैं? आज इन्फॉरमेशन ओवरलोड है लेकिन क्वालिटी ऑफ इन्फॉरमेशन आज क्वेश्चन मार्क है। कभी-कभी आप पॉजीटिव इन्फॉरमेशन का भी ओवरलोड ले सकते हैं। पॉजीटिव इन्फॉरमेशन आपको हेल्दी बना रहा है। क्योंकि जो अंदर जा रहा है वो आपकी सोच को प्रभावित कर रहा है। जो हम भोजन करते हैं उसके पोषक तत्व हमारे शरीर को बनाते है। उसी प्रकार हमारी मन की हेल्थ और हमारी हर सोच का प्रभाव इन्फॉरमेशन से है। इन्फॉरमेशन इज दा रा मटेरियल।
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पॉजीटिव कैसे सोचें…?
इन्फॉरमेशन के द्वारा जो अंदर जा रहा है वो हमारी सोच पर असर कर रहा है। फिर हम कहते हैं निगेटिव सोचना तो नार्मल है हम पॉजीटिव कैसे सोचे? क्योंकि हमें सोच की सोर्स का ही पता नहीं है। सोच का सोर्स है इन्फॉरमेशन। जिसके आधार से सोच बनती है। जिस तरह की इन्फॉरमेशन हमारे अंदर जायेगी उसी तरह की हमारी सोच बनेगी। इन्फॉरमेशन देने वाले का उद्देश्य तो बहुत प्योर है कि वो हमें इन्फॉर्म करना चाहते हैं, सिखाना चाहते हैं। एक होता है सिखाना है और एक है हम बार-बार उसी चीज को करते है। मुझे पता है गाड़ी और स्कूटर बहुत ध्यान से चलाना चाहिए और हम ध्यान से चलाते भी हैं। क्योंकि वो हमें इन्फॉरमेशन दी गई है। जब हमने लाइसेंस लिया था तब हमें सिखाया गया था।
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कहीं आप ये सोचकर तो घर से नहीं निकलते…
सिर्फ एक दिन हम सिर्फ यही इन्फॉरमेशन लें हर रोज एक्सीडेंट कितने हो रहे हैं। पूरे विश्व में एक्सीडेंट कितने हो रहे हैं। अभी इस देश में कितने एक्सीडेंट हुए। अगले घंटे इस देश में कितने डेथ हुए। हमें पता है एक्सीडेंट होता है। हमें पता है गाड़ी कैसे चलाना है। हमें ध्यान भी रखना है। अगर हम अपने मन में सिर्फ वही इन्फॉरमेशन भरेंगे तो एक्सीडेंट हो या न हो वो दूसरी बात है लेकिन डर और चिंता हमारे अंदर इतना भर जायेगा कि जब हम वो गाड़ी या स्कूटर चलाने निकलेंगे तो वो डर ही मुझे पैरालाइज कर देगा जिससे एक्सीडेंट होने की संभावना बढ़ जायेगा। एक्सीडेंट होना या न होना इसकी संभावना .०० प्रतिशत है। रोज सुबह जब हम लोग घर से निकलते हैं तो ये सोचकर गाड़ी नहीं निकालते कि कहीं एक्सीडेंट न हो जाए। ये सोचके आप अपना स्कूटकर पार्किंग लॉट से नहीं निकालेंगे कि कहीं एक्सीडेंट न हो जाए। आप फ्लाइट में बैठेंगे तो ये नहीं सोचेंगे कि कहीं प्लेन कै्रश न हो जाए। आप ट्रेन में बैठेंगे तो ये नहीं सोचेंगे कि डिरेल होकर कहीं ट्रेन एक्सीडेंट न हो जाए। ये सब कुछ होता है।
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हम किस प्रकार की मैसेजेज भेज रहे हैं एक-दूसरे को…
लेकिन अब हम कौनसी थॉट क्रियेट कर रहे हैं सारा दिन कि कहीं हमें कोरोना न हो जाए। क्योंकि हम इतनी इन्फॉरमेशन दे रहे हैं उसकी। न्यूज चैनल, सिर्फ सोशल मीडिया ही नहीं हम सारा दिन कौनसे मैसेजेज भेज रहे हैं एक-दूसरे को। हर दस मिनट के बाद आप अपना फोन उठायें और मैसेजेज चेक करें तो कोई न कोई शुभचिंतक बड़ी शुभभावना से आपको याद दिला ही देगा। लेकिन मैसेज यही भेज रहे है कि आज करोना से इतने लोग मरे, यहां फैल गया, इतने लोग प्रभावित हुए, संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है, इस स्टेट में ये हो गया। अभी कोरोना से एक डेथ इस शहर में हो गई। यही मैसेजज आज लोग एवरी टेन मिनट शेयर कर रहे हैं।
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इस तरह से हम डर और चिंता कई गुणा बढ़ा रहे हैं…
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इन्फॉरमेशन से हमारी थॉट बना रही है। अगर हमने लगातार वही इन्फॉरमेशन ली तो इससे हमारा डर बढ़ जायेगा। हमें ध्यान रखने की इन्फॉरमेशन लेनी है न कि इस बीमारी से जो नुकसान हो रहा है उसकी इन्फॉरमेशन लेनी है। कोरोना के बारे में जानने के लिए हम दिन में पंद्रह मिनट के लिए न्यूज सुनेंगे हम अवेयर हो जायेंगे कि दुनिया में क्या हो रहा है। लेकिन हम हर पंद्रह मिनट के बाद कोरोना के बारे में ही सुनेंगे और उसका ही विडियो देखेंगे, फिर उसी के बारे में सोचेंगे, फिर अगले एक घंटे तक उसके बारे में ही बात करेंगे, फिर आपकी पूरी एनर्जी सिर्फ बीमारी, मृत्यु, भयभीत और चिंता करने वाली हो जाएगी। अगर हमने लगातार वही देखा, वही पढ़ा, वही मैसेजेज चार बार सुन लिया। फिर सिर्फ सुना और पढ़ा ही नहीं औरों को भी सुनाया। औरों को भी भेजा इससे तो हम लोगों के मन में डर और चिंता को कई गुना बढ़ा रहे हैं।
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सबसे बड़ा एहतियात यह होना चाहिए…
वो वायरस इतना डर और चिंता पैदा नहीं कर रहा है जितना ये मैसेजेज एक-दूसरे को भेजने से पैदा हो रहा है। इसी चीज का लगातार एक-दूसरे को मैसेजेज भेजना हमारे मन पर प्रभाव डाल रहा है और मन हमारे शरीर को प्रभावित कर रहा है। जब हमारा मन और शरीर दोनों कमजोर हो जायेगा तो हमारे ऊपर उस बीमारी के होने की संभावना बढ़ जाती है। जब हम इतनी सारी सावधानियां एक-दूसरे को सुना रहे हैं, शेयर कर रहे हैं तो सबसे बड़ा एहतियात तो ये होना चाहिए कि हमें इससे सम्बन्धित न ही किसी को मैसेज भेजना है और न ही सुनना है। डॉक्टर ने हमें जो बताना है, सरकार ने हमें जो बताना है वो एक छोटे से नोट में आ जायेगा। उसके लिए इतने सारे विडियो, इतने सारे ऑडियो, इतने सारे मैसेजेज, इतने सारे डेटा को जानने की आवश्यकता नहीं है। हमें यह भी नहीं जानने की जरूरत है कि हर थोड़ी देर के बाद अब इस स्टेट में एक और अभी इधर पांच और नहीं यह हमारे जीवन के लिए सही नहीं है।
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इससे रिस्क फैक्टर और बढ़ जायेगा
इस प्रकार के इन्फॉरमेशन जानने से बचाव नहीं बल्कि रिस्क फैक्टर और ज्यादा बढ़ जाता है। हमें लगता है कि भय क्या कर सकता है भय होना तो नैचुरल है। जबकि भय हमार इमोशनल हेल्थ को कमजोर कर रहा है। थोड़ी देर का भय नैचुरल है लेकिन यहां तो भय लगातार बढ़ता ही जा रहा है।