हाइलाइट्स:-
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हजारों भाई-बहनों ने नम आंखों से दी अंतिम विदाई
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अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी, महासचिव बीके निर्वैर और दादीजी के अंग-संग रही बीके नीलू बहन ने दी मुखाग्नि
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ब्रह्माकुमारीज के अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय शांतिवन में किया गया अंतिम संस्कार
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राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दुख जताते हुए अर्पित की श्रद्धांजलि
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11 मार्च को सुबह 10.30 बजे मुंबई के सैफी हॉस्पिटल में ली थी अंतिम सांस
नवयुग टाइम्स, रिपोर्टर, राजस्थान 13 मार्च 2021
आबू रोड (राजस्थान)। राजयोगिनी दादी हृदयमोहिनी शनिवार की प्रातः हजारों भाई-बहनों की ओम शांति की मंगल ध्वनि के साथ ही दादी पंचतत्वों में विलीन हो गई। इसीके साथ ही दादी हम सबकी यादों में सदा के लिए अमर हो गई। दादी जी का अंतिम संस्कार सुबह 10 बजे ब्रह्माकुमारी संस्थान के अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय आबूरोड, शांतिवन में किया गया। अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी, महासचिव बीके निर्वैर और बीके नीलू बहन ने उन्हें मुखाग्नि देकर अंतिम विदाई दी।
बता दें कि दादी हृदयमोहिनी ने 11 मार्च को सुबह 10.30 बजे मुंबई के सैफी हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली थी। इसके बाद उनके पार्थिक शरीर को एयर एंबुलेंस से शांतिवन लाया गया, जहां देश-विदेश से आने वाले भाई-बहनों के अंतिम दर्शन के लिए रखा गया। हजारों की संख्या में मौजूद भाई-बहनों ने अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए दादीजी की शिक्षाओं को जीवन में उतारने, उनके बताए कदमों पर चलने और उनके समान योग-साधना कर खुद को परिपक्व बनाने का संकल्प लिया। अंतिम संस्कार के बाद दादीजी की याद में परमपिता शिव परमात्मा को भोग स्वीकार कराया गया।
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ड़ॉक्टर बोले- दादी के चेहरे पर कभी दर्द की फीलिंग नहीं देखी
मुंबई से आए सैफी हॉस्पिटल में दादीजी का इलाज करने वाले डॉक्टर्स डॉ. दीपेश अग्रवाल, डॉ. प्रसन्ना, डॉ. आकाश शुक्ला, डॉ. निपुन गंगवाला, डॉ. मनोज चावला, डॉ. जिगर देसाई ने अपने-अपने अनुभव बताते हुए कहा कि हम खुद को भाग्यशाली समझते हैं कि हमें दादीजी जैसी दिव्य और महान आत्मा का इलाज करने का मौका मिला। हमारे जीवन का यह पहला अनुभव रहा है कि किसी मरीज के इलाज के दौरान दिव्य अनुभूति हुई। जैसे ही दादीजी के रूम में जाते थे तो मन को शक्तिशाली फीलिंग होती थी। बीमारी के बाद भी दादीजी के चेहरे पर कभी दर्द, दुख या उदासी की फीलिंग नहीं देखी। दादीजी के साथ के अनुभव को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है।
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दादी के साथ सखी की तरह रही
शुरू से ही दादी हृदयमोहिनी के साथ सखी की तरह रही। दादी का बचपन से ही शांत और गंभीर स्वभाव था। उनकी बुद्धि की लाइन इतनी क्लीयर थी कि कुछ ही सेकंड में वह ध्यानमग्न हो जाती थीं। उनका जीवन दिव्यता, पवित्रता और योग-साधना के प्रति अद्भुत लगन का मिसाल था।
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उनकी शिक्षाएं सदा मार्ग दर्शन करती रहेंगी
हम सभी को परमात्मा पिता से मंगल मिलन कराने वालीं, परमात्म की संदेशवाहक दादी व्यक्त रूप से जरूर हम सबके बीच नहीं रहीं लेकिन उनके द्वारा दी गईं अव्यक्त शिक्षाएं सदा भाई-बहनों का मागर्दशन करतीं रहेंगीं।
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दादी का एक-एक कर्म आदर्श था
दादीजी का प्यार, स्नेह, दुलार और वात्सल्य बचपन से ही मिला। दादीजी का एक-एक कर्म आदर्श कर्म होता था। उनके साथ रहने पर ऐसी अनुभूति होती थी कि जैसे कोई दिव्य फरिश्ता के साथ हैं। उन्होंने योग-तपस्या से खुद को इतना शक्तिशाली बना लिया था कि उनके संपर्क में आने वाले हर एक भाई-बहन को अनुभूति होती थी।
बीके जयंती, यूरोपीय देशों में ब्रह्माकुमारीज की निदेशिका
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दादी हृदयमोहिनी के जीवन की मुख्य शिक्षाएं-
1. दादी कहती थीं कि परेशान होने के पांच शब्द हैं- पहला है क्यों… क्यों कहा और व्यर्थ संकल्पों की क्यूं चालू हो जाती है, इसने ये कहा, उसने ये कहा और मन में व्यर्थ संकल्प चालू हो जाते हैं। क्योंकि जो बीत चुका वह हमारे हाथ में नहीं है। फ्यूचर ही हमारे हाथ में है। क्यूं, क्या, कौन, कब और कैसे… ये पांच शब्द हमें परेशान करते हैं। खुशी के जाने के यह पांच शब्द ही हैं।
2. हर कार्य में सफल होने का एक ही मूलमंत्र है – दृढ़ता। यदि जीवन में दृढ़ता है तो सफलता निश्चित है, हुई पड़ी है। इसलिए प्लानिंग करके उसे पूरा करने के लिए दृढ़ संकल्प करें। मेरे जीवन का अनुभव है कि जो भी कार्य किया है वह दृढ़ता के साथ किया है और सदा सफलता मिली है। दृढ़ता रूपी चाबी को हमेशा संभालकर रखें।