आज भले ही दादी ईशु हम सबके बीच नहीं हैं लेकिन दादी जी के अंग-संग रही ब्रह्माकुमारी कविता बहन दादियों के संग बिताए हुए अपने अनमोल लम्हों को अपनी यादों में सहेजते हुए बताती हैं कि विश्व की हर आत्मा चाहे वे महारथी भाई-बहनें हैं, चाहे बाबा के नये व पुराने बच्चे हैं, हर किसी की आँखें दादियों की रूहानी प्यार व पालना के लिए तरस रही है। दादियों की पालना व प्यार जिन्हें भी मिला उसका जीवन परिवर्तन हो गया। दादीजी के द्वारा दी गई अनमोल शिक्षाएं आज भी हमारा मार्गदर्शन कर रही है। उनके हर बोल में इतनी शक्ति व प्यार समाया होता था कि निर्बल आत्मा भी समर्थ बन जाती थी। उनके वरदानी बोल सफलता के नए द्वार खोल देती थी। हमारी सर्व दादियां नए विश्व की स्थापना की आधार स्तम्भ है।
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इस तरह से दादी प्रेरणास्रोत बन गई…
दादी ईशु बाबा-मम्मा के साथ रहकर उनके द्वारा दी गई शिक्षाओं को जीवन में धारण कर अपने जीवन को इतना गुणवान बनाया कि वे आज भी हमें प्रेरणा दे रहे हैं। दादियों के जीवन में इतने गुण भरे हुए थे कि मैं उसका वर्णन नहीं कर सकती हूं। वे बचपन से ही मम्मा बाबा के श्रीमत पर चलकर अपने जीवन को गुणवान बनाया। उनकी एक विशेषता मैंने देखी कि उन्होंने कभी भी श्रीमत में मनमत मिक्स नहीं किया। बाबा और दादियों ने जैसा कहा वैसा करके दिखाया। इस तरह से दादी ईशु हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत बन गई।
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दादी कब दादी से, दादी मां बन गई…
हमारी सर्व दादियां सिर्फ हमारी ही नहीं बल्कि विश्व की हर आत्मा के लिए दादी मां बन गई। मैं अनुभव करती हूं कि जो भी भाई-बहनें मधुबन में आते हैं उनकी नजरें दादियों की एक झलक पाने के लिए ढूंढ़ते रहती है। सभी यही कहते हैं मधुबन दादियों के बिना सुना हो गया है, पहले तो आश होती थी कि शिवबाबा दादी जी के तन में आते थे, वो अपनी खुशी होती थी कुछ समय बाद वह भी पार्ट ड्रामा का चेंज हो गया, तो लोग दादियों से मिलकर खुश और सन्तुष्ट हो जाते थे। अब तो वह भी समय नहीं रहा। किसी को भी यह मालूम नहीं था कि ड्रामा का यह पार्ट इतना जल्दी बदल जाएगा। लेकिन प्राणप्यारे बाबा हमें यही शिक्षा देते हैं कि बच्चे मैं सदा आपके साथ रहता हूं। हमारी दादियां भी यही संदेश देते हैं कि हम सभी आपके साथ हैं। हमारी दादियां बाबा के इस बेहद के यज्ञ में छोटी बच्ची बनकर आयी थी और हम सबके देखते-देखते वो कब दीदी बनी, कब दादी बनी और कब दादी से दादी मां बनकर विश्व को अलोकित करने लगी पता ही नहीं चला। तो ऐसी थी हमारी यज्ञ रक्षक दादियां जिनसे हमने इतने वर्षों से प्यार और पालना पायी और उनके द्वारा दी गई शिक्षाओं को जीवन में अपनाया।