हाईलाट्स:
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राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई
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कला और संस्कृति प्रभाग के सम्मेलन का राज्यपाल ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया शुभारंभ
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देशभर से पहुंचे कलाकार, नाट्यकर्मी, कवि, गायक और संगीतकार
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सकारात्मक परिवर्तन की कला से आनंदमय जीवन विषय पर आयोजित हुआ कार्यक्रम
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जीवन को सकारात्मकता की दिशा में बढ़ाएंगे तो पवित्रता आएगी, आनंद आएगा
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हमारा मेडिटेशन, ध्यान योग, वेद, दर्शन शास्त्र, रामायण, गीता यह हमारे ऋषियों का चिंतन था, जिसे आज की नई पीढ़ी देख भी नहीं पाती है
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आत्मा के कारण शरीर है, न कि शरीर के कारण आत्मा
नवयुग टाइम्स संवादाता, राजस्थान, 02/09/2023
आबू रोड (राजस्थान)। आज वैज्ञानिकों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में हमें चांद पर पहुंचा दिया। यह सब घटनाएं मानव के भौतिक विकास की परिचायक हैं। हमने बड़े-बड़े कारखाने, रेल पटरियां बनाईं, उद्योग स्थापित किए लेकिन जब अध्यात्मवाद की बात आती है तो हम बहुत पीछे चल रहे हैं। भौतिकवाद और अध्यात्मवाद जब एक-दूसरे का सहायक बनता है तो वह पूर्णता की ओर बढ़ता है। ब्रह्माकुमारीज़ इन दोनों चिंतन को लेकर आगे बढ़ रही है। हम आध्यात्मिक रूप से विकसित हुए बिना भौतिक साधनों का सदुपयोग नहीं कर पाएंगे। बिना अध्यात्म के विकास, कभी भी सुख-शांति का आधार हो नहीं सकता है। महान साइंटिस्ट ने कहा था कि विज्ञान और अध्यात्मवाद जब एक-दूसरे के पूरक बनते हैं तब हम परमात्मा द्वारा बनाई गई सृष्टि का आनंद लेते हैं।
उक्त उद्गार गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने ब्रह्माकुमारीज के कला एवं संस्कृति प्रभाग द्वारा सकारात्मक परिवर्तन की कला से आनंदमय जीवन विषय पर आयोजित चार दिवसीय सम्मेलन का दीप प्रज्ज्वलित कर उद्घाटन करते हुए बोल रहे थे। आगे उन्होंने कहा काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार ये मानव के शत्रु हैं। असली विजय अंदर की विजय है। हमारे चिंतन में, वेदों में बाहर की जीत को जीत नहीं माना गया है। असली जीत हमारे अंदर की जीत है। अंदर के शत्रुओं को जीतने वाला ही विजेता है। यहां का चिंतन हमारी खुराक है। वैदिक साहित्य का पुरातन खजाना सकारात्मक और विश्वव्यापी चिंतन है। हमारी असली खुराक अध्यात्म चिंतन है जो ब्रह्माकुमारीज़ में मिलता है।
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यही तरीका वेदों ने सिखाया…
राज्यपाल ने कहा जीवन को सकारात्मकता की दिशा में बढ़ाएंगे तो पवित्रता आएगी, आनंद आएगा। यह चिंतन साधु-संत और ब्रह्माकुमारी बहनों द्वारा लोगों को दिया जा रहा है। हमने ही नारा दिया वसुधैव कुटुम्बकम्। सारी दुनिया मेरी है और सारी दुनिया मैं हूं। यही तरीका वेदों ने सिखाया। न हमने किसी को अपना बनाया न किसी के बने। हम भौतिक रूप से बहुत आगे बढ़े, लेकिन आध्यात्मिक रूप से पिछड़ते चले गए हैं। हमारा मेडिटेशन, ध्यान योग, वेद, दर्शन शास्त्र, रामायण, गीता यह हमारे ऋषियों का चिंतन था। आज नई पीढ़ियां इसे देख भी नहीं पाती हैं। आज ब्रह्माकुमारीज़ जैसे केंद्र इनके प्रसार में लगी हैं। इनके समस्त विश्व में परम विस्तार की आवश्यकता है।
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साध्य की प्राप्ति के लिए साधन जरूरी –
राज्यपाल ने कहा कि परमात्मा सतचित् आनंद, दयालु, निर्विकार, सर्वेश्वर, अमर, पवित्र है ऐसे परमात्मा के सान्निध्य में आकर ये सारे गुणों के आनंद मिलने का रास्ता ब्रह्माकुमारीज़ जैसे स्थलों पर आकर उदित होता है। हम भौतिक विकास के विरोधी नहीं हैं, वह हो। साध्य की प्राप्ति के लिए साधन जरूरी हैं। बिना शरीर के आत्मा कैसे इसमें आकर सुख-दुख की अनुभूति करेगी। शरीर सत्य तो है लेकिन इसके अलावा आत्मा अधिक सत्य है। आत्मा के कारण शरीर है, न कि शरीर के कारण आत्मा।
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यहां पर आना ही अपनेआप में बड़ी अचीवमेंट –
मुंबई से आईं प्रसिद्ध फिल्म एक्ट्रेस मधु शाह ने कहा कि आस्था चैनल पर ब्रह्माकुमारी शिवानी दीदी को सुना और धीरे-धीरे मेरी सोच बदलने लगी। उनकी क्लास से जाना कि हमें डेली लाइफ में कैसे थॉट्स करना है। दीदी को सुनकर मैं ब्रह्माकुमारीज़ से जुड़ी। यहां पर आना ही अपनेआप में बड़ी अचीवमेंट है। यहां अपनेआप मन मेडिटेशन में लगता है। यहां के पवित्र बाइव्रेशन हमें फील होते हैं। राजयोग का कमाल है कि यहां सभी के चेहरे चमकते हुए हैं। मैंने यहां से सीखा है कि हमें अपने कर्म से लोगों को अपने होने का अहसास कराना है। खुद में सकारात्मक परिवर्तन लाना है। यही बात में सीखकर जा रही हूं।
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जो करना चाहिए वही करेंगे वह सकारात्मक है-
कला-संस्कृति प्रभाग की राष्ट्रीय अध्यक्षा राजयोगिनी चंद्रिका दीदी ने कहा कि वास्तव में हम सभी आत्माएं हैं। परम कलाकार परमपिता शिव परमात्मा 87 साल से विश्व परिवर्तन का कार्य करा रहे हैं। यहां 13 लाख से अधिक युवा, बड़े, बच्चे-बुजुर्ग इस कार्य में सहयोगी बने हुए हैं। आज से हम खुद को एक महान आत्मा, चैतन्य आत्मा, दिव्य आत्मा समझना शुरू कर दें। परमात्मा आनंद के सागर हैं, प्रेम के सागर हैं, सुख के सागर हैं, सर्वशक्तिमान हैं, उसी तरह मैं आत्मा आनंद स्वरूप, प्रेम स्वरूप, सुख स्वरूप हूं। इसी सोच, संकल्प और भावना से कर्म में आने से मन परिवर्तन, व्यक्ति परिवर्तन, समाज परिवर्तन होगा, हो रहा है। आज से संकल्प करें कि मुझे अपनेआप में सकारात्मक परिवर्तन करना है। जो करना चाहिए वही करेंगे वह सकारात्मक है। उन्होंने सभी को संकल्प कराया कि आज के इस कला संस्कृति कार्यक्रम के अंतर्गत मैं अपनेआप से संकल्प करता हूं कि मैं अपने जीवन में संपूर्ण सकारात्मकता को अपनाकर, औरों के जीवन में भी सकारात्मकता का चिंतन करके अपना संपूर्ण योगदान दूंगी।
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मन ही दुख और सुख का कारण है –
संयुक्त मुख्य प्रशासिका बीके डॉ. निर्मला दीदी ने कहा कि मन ही दुख और सुख का कारण है। जो पॉजीटिव सोचने वाला है तो उसी स्थिति को पॉजीटिव स्थिति से सोचेंगे और खुश रहेंगे। जो नेगेटिव सोचने वाले होंगे उसी को नेगेटिव सोचकर खराब कर देंगे। साइंस ने सबकुछ हासिल कर लिया है लेकिन पॉजीटिव जीवन जीने की कला ब्रह्माकुमारीज़ सिखा रही है।
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स्प्रीचुअल यूनवर्सिटी एक ही है –
कार्यकारी सचिव बीके डॉ. मृत्युंजय भाई ने स्वागत भाषण देते हुए कहा कि दुनिया में बहुत यूनिवर्सिटी हैं लेकिन पूरे विश्व में एकमात्र ब्रह्माकुमारीज़ स्प्रीचुअल यूनिवर्सिटी है। यहां मनुष्य से देवता बनने, सकारात्मक जीवन जीने की पढ़ाई पढ़ाई जाती है। जीवन को आनंदमय जीवन जीने की विधि सिखाई जाती है।
गुजरात भावनगर से आईं वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका राजयोगिनी तृप्ति दीदी ने राजयोग मेडिटेशन से गहन शांति की अनुभूति कराई। मंच का कुशल संचालन गामदेवी, मुम्बई से आईं जोनल को-ऑर्डिनेटर बीके नेहा बहन ने किया।