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प्रकृति की करुण पुकार…
मैं प्रकृति ईश्वर तो नहीं लेकिन ईश्वर की बनाई इस नायाब और अनोखी दुनिया का आधार, आदि और मूल हूं। मुझसे ही इस वसुंधरा की शोभा है। मेरा अपना गौरवशाली इतिहास है। मेरा स्वरूप पावन, पवित्र, शुद्ध और सुंदर है। मैं पांच तत्व पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश से मिलकर बनी हूं। यही मेरे पांच अनमोल रतन और मेरे प्राण हैं। इनकी अपनी विशेषता और महानता है। जिसके बिना मेरा कोई अस्तित्व नहीं है। सभी का आपस में गहरा स्नेह, प्रेम, वात्सल्य और अनुराग है। धरा ने मानव को अपने आंचल में पनाह दी तो पवन, प्राणवायु बनकर सांसों की डोर थाम ली। जल ने कंड को शीतल किया तो अग्नि ने मानव की रगों में ऊर्जा भर दी। आकाश ने अपने विशाल हृदय में छाया बनकर सभी को समेट लिया।
सृष्टि के आदि में मेरा स्वरूप सर्वोत्तम, श्रेष्ठ और गौरवशाली था। मेरे पांचों तत्व स्वस्थ और तंदुरुस्त थे। जिन पर मुझे नाज था और हर मानव मुझसे अति प्रेम करता था। वह मेरा और मेरे तत्वों के सुख-दु:ख का ख्याल रखता था। पर जैसे-जैसे ये सृष्टि का पहिया आगे बढ़ता गया तो मानव का मुझसे प्रेम कम होता गया। उसमें अहं आता गया औैर खुद के बलशाली होने के गुमान में भौतिक साधनों की प्राप्ति के लिए मेरे तत्वों का दूरापयोग करना शुरू कर दिया। सतयुग से त्रेतायुग और द्वापरयुग तक मानव का आचरण देवतुल्य रहा। उसने मेरा पालन-पोषण और संरक्षण मां के समान किया, लेकिन जैसे ही कलियुग का आरंभ हुआ तो इसी मानव ने मेरा विनाश करना शुरू कर दिया। मेरे बच्चों को तरह-तरह की यातनाएं दी गईं। मेरा कलेजा तक चीर दिया।

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फिर भी मैं चुप रही…
मेरे पृथ्वी तत्व के टुकड़े-टुकड़े कर और ईंट-पत्थर के जंगल खड़ा कर उसका सीना चीर दिया। ऊपर से अपना बोझ (जनसंख्या) बढ़ाता गया, फिर भी मैं चुप रही।
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निरझर धारा को बहने से रोक दिया…
मेरे दूसरे तत्व जल से मेरी आंखों के सामने उसकी निरझर धारा को बहने से रोक दिया, उसमें मल-मूत्र, गंदगी, रसायन, कारखानों का विषैला पानी बहा कर उसके स्वरूप को बिगाड़ दिया, फिर भी मैं चुप रही।
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दम घुटने लगा…
मेरे तीसरे तत्व वायु को अपने ऐशो-आराम के साधनों द्वारा वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड और विषैली गैसों को छोडक़र इतना प्रदूषित कर दिया उसका दम घुटने लगा, फिर भी मैं चुप रही।
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ताकि सब मिलकर मानव को सुख दे सकें…
मेरे चौथे तत्व आकाश ने अपने आंगन तले उसे जीवन के रंग भरना सिखाए। सभी तत्वों को आपस में जोडक़र प्रेम बनाए रखा ताकि सब मिलकर मानव को हर सुख दे सकें, लेकिन उसे भी कार्बन मोनो ऑक्साइड, कार्बन डाई ऑक्साइड का धीमा जहर देकर संक्रमित कर दिया। वायु और आकाश दोनों तत्वों के आपस के सामंजस्य को तोड़ दिया, फिर भी मैं चुप रही।
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जिसकी महिमा स्वयं देवगण करते हैं…
मेरे पांचवें तत्व अग्नि को वह अपनी जागीर समझने लगा। जिसकी महिमा स्वयं देवगण करते हैं। मेरे उस तत्व अग्नि को भी अपने गलत कर्मों से गहरे जख्म दिए।
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जीवन को उपवन की तरह बनाएं…
मैंने मानव को कंद-फल, सब्जी और अनाज दिए ताकि वह स्वस्थ और निरोगी रहकर जीवन को उपवन की तरह बनाएं, लेकिन उसने जीव-जंतुओं, जानवरों तक को अपना आहार बनाना शुरू कर दिया। यह देखकर मेरा कलेजा फट गया, मेरे धैर्य का बांध टूट गया।
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पांचों तत्वों को वेंटीलेटर पर पहुंचा दिया…
मेरे पांचों तत्वों के साथ इतना अन्याय मैं अब और नहीं देख सकती… मेरा कलेजा फटता जा रहा है। मुझे वा मेरे तत्वों को मानव ने वेंटीलेटर पर पहुंचा दिया… पर मैं कमजोर नहीं हूं… मैं अपने तत्वों को इस तरह मरते नहीं देख सकती… मानव को अपने पाप कर्मों, गलत कर्मों की सजा भोगनी होगी… मुझसे अब और नहीं सहा जाता। कोरोना वायरस तो मानव को उसकी गलती का एहसास कराने के लिए एक झलक मात्र है… पर तू अभी भी नहीं सुधरा तो होशियार अब मैं दोबारा मौका नहीं दूंगी।
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मुस्कुराहट फिर से लौट रही है…
एक वायरस से जब पूरी मानव जाति का ये हाल कर दिया तो सोच जिस दिन मैंने अपना रौद्र रूप दिखाया तो क्या होगा? लेकिन कुछ दिन के लिए ही सही मेरे तत्वों की मुस्कान वापस आ रही है। वसुंधरा (पृथ्वी) की मुस्कुराहट फिर से लौट रही है। पवन (वायु) गीत गुनगुनाने लगा है। जल कल-कल करते झरने की तरह बह रहा है। अब मानव मांसाहार से शाकाहार की ओर लौट रहा है, जीव-जंतु सुखी हो रहे हैं और आकाश फिर से अपने मूल स्वरूप में लौट रहा है। मैं अपने बच्चों को खुश देख मैं भी अपना श्रृंगार कर रही हूं ताकि मानव को फिर से सुखमय जीवन के लिए अपने तत्वों को सेवा में लगा सकूं… क्योंकि मेरे जीवन का मूल ही है सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया…. ।
( यह लेखक के अपने विचार हैं।)