प्रेम और भाईचारे की ज्योति : दादी प्रकाशमणि

हाईलाइट्स :

  • दादी का प्रेम: जिसने सरहदों को मिटाकर दुनिया को एक किया

  • दादी का कहना – मेरा करना: समर्पण की जीवंत मिसाल

  • नम्रता ही सच्चे नेतृत्व की पहचान है

  • दादी की पालना: जिसने हजारों बेटियों को जीवन का नया मार्ग दिया

  • एकता का संदेश: दादी की ज्योति आज भी अमर है

  • प्रेम ही सबसे बड़ी शक्ति है: दादी का जीवन संदेश

  • दादी की शिक्षाएँ – हर दिल के लिए मार्गदर्शन का दीपक

  • जहाँ प्रेम और एकता है, वहाँ असंभव भी संभव है

नवयुग टाइम्स, संवादाता, राजस्थान

आबूरोड। ब्रह्माकुमारीज़ की पूर्व मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी प्रकाशमणि जी की 18वीं पुण्यतिथि पूरे देशभर में विश्व बंधुत्व दिवस के रूप में मनाई गई। शांतिवन मुख्यालय में पाँच हज़ार से अधिक भाई-बहनों ने श्रद्धांजलि अर्पित कर यह संकल्प लिया कि – 👉 “दादी के दिखाए मार्ग पर चलकर प्रेम, शांति और एकता का संदेश आगे बढ़ाएँगे।”

सुबह 8:15 बजे प्रकाश स्तंभ पर पुष्पांजलि अर्पित की गई, जो दादी की अमर ज्योति और आशा का प्रतीक है। वहीं डायमंड हॉल में विशेष श्रद्धांजलि सभा में दादी की शिक्षाओं को याद किया गया।

गौरतलब है कि 25 अगस्त 2007 को दादी प्रकाशमणि जी ने यह नश्वर देह त्याग दी थी, पर उनकी शिक्षाएँ आज भी हर दिल में अमर हैं। उनकी वाणी, उनकी मुस्कान और उनका संदेश आज भी इंसानियत को सही राह दिखा रहा है।

🌸 दादी का प्रेम ही था जिसने दुनिया को एक सूत्र में बाँधा 🌸

मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके मोहिनी दीदी ने श्रद्धा भरे शब्दों में कहा कि दादी ने हमेशा यही कहा कि मैं तो निमित्त मात्र हूँ, यह ईश्वरीय विश्वविद्यालय शिव बाबा चला रहे हैं। दादी का सम्पूर्ण जीवन प्रेम, एकता और भाईचारे का संदेश देने में समर्पित रहा। वे कहती थीं कि प्रेम और एकता में इतनी शक्ति है कि बड़े से बड़ा कार्य सहज ही संभव हो जाता है। दादी का यही प्रेम था जिसने सीमाओं और सरहदों को मिटाकर पूरे विश्व को एक सूत्र में बाँध दिया।

🌸 दादी की शिक्षाएँ आज भी देती हैं शक्ति और मार्गदर्शन 🌸

अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके मुन्नी दीदी ने भावुक शब्दों में दादी को स्मरण करते हुए कहा कि दादी का कहना ही मेरे लिए करना होता था। मैंने कभी भी दादी को किसी सेवा के लिए ‘न’ नहीं कहा। आज भी इस ईश्वरीय विश्वविद्यालय को दादी की शिक्षाओं के आधार पर ही संभाल रही हूँ। मुझे हर पल उनकी सूक्ष्म उपस्थिति का अनुभव होता है, जैसे वे अब भी हमें मार्गदर्शन दे रही हों।”

🌸 हमें हर एक अंश को सार्थक बनाना है 🌸

संयुक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके संतोष दीदी ने कहा कि दादी सदा सेवाओं में दिन-रात व्यस्त रहती थीं और भाई-बहनों को भी सेवामय बनाए रखती थीं। दादी हमेशा कहती थीं कि इस ईश्वरीय विश्व विद्यालय में आया हर एक रुपया दान का है, इसलिए हमें उसे सफल और सार्थक बनाना है। उनके शब्द यह प्रेरणा देते हैं कि दान और सेवा का हर छोटा योगदान ईश्वर के कार्य को गति देता है।

🌸 दादी की नम्रता और आदर्श जीवन 🌸

अतिरिक्त महासचिव बीके करुणा भाई ने भावुक होकर कहा कि दादी के सान्निध्य में वर्षों तक सेवाएँ करने का सौभाग्य मिला। दादी के जीवन से अनेकों शिक्षाएँ मिलीं। उनमें नम्रता का गुण अद्वितीय था। वे छोटे-बड़े सभी का बहुत सम्मान करती थीं और अपने दिव्य कर्मों से सदैव आदर्श प्रस्तुत करती थीं। यह स्मरण दिलाता है कि सच्चा नेतृत्व नम्रता और सम्मान से ही महान बनता है।

🌸 प्रेम से सिखाने वाली दादी 🌸

अतिरिक्त महासचिव डॉ. बीके मृत्युंजय भाई ने कहा कि दादी एक-एक बात को बड़े ही प्यार से सिखाती थीं। उन्होंने सेवाओं में मार्गदर्शन के साथ ही मेहमानों की देखभाल पर विशेष ध्यान दिया।
वरिष्ठ राजयोग प्रशिक्षक बीके सूरज भाई ने कहा कि दादी की प्यार भरी पालना और अपनापन ही था कि हजारों कन्याएँ और बेटियाँ ब्रह्माकुमारी बनती गईं। जहाँ-जहाँ दादी के कदम पड़े, वहाँ सेवाएँ तेज़ी से बढ़ीं। दादी को देखकर हर किसी के दिल से यह निकलता था – मेरी दादी।

🌸 श्रद्धांजलि के स्वर और भावनाएँ 🌸

श्रद्धांजलि सभा का संचालन प्रयागराज की निदेशिका राजयोगिनी बीके मनोरमा दीदी ने किया। इस दौरान डॉ. बीके दामिनी बहन, मधुरवाणी ग्रुप के बीके सतीश भाई एवं अन्य कलाकारों ने अपने मधुर गीतों से वातावरण को भावनाओं और प्रेरणा से भर दिया।

🌸 देशभर से उमड़ा श्रद्धा का सैलाब 🌸

इस अवसर पर अयोध्या के सेवानिवृत्त आईपीएस केबी सिंह, संयुक्त मुख्य प्रशासिका बीके शशी दीदी, वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका बीके शारदा दीदी, बीके लीला दीदी, पंजाब जोन की निदेशिका बीके प्रेम दीदी, अतिरिक्त महासचिव डॉ. प्रताप मिड्ढा, मीडिया विंग के उपाध्यक्ष बीके आत्म प्रकाश भाई, डॉ. सतीश गुप्ता सहित देशभर से आए पाँच हज़ार से अधिक लोग मौजूद रहे।
हर किसी की आँखों में श्रद्धा और हृदय में यही भाव था कि –
🌟 “दादी भले ही देह त्याग कर अव्यक्त हो गईं हों, लेकिन उनका प्रेम, उनकी शिक्षाएँ और उनकी एकता की ज्योति आज भी अमर है।” 🌟

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