ब्रह्माकुमारी शिवानी बहन, वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका, ब्रह्माकुमारीज

सारा विश्व सोचेगा तो विश्व की डेस्टिनी चेंज हो जायेगी

  • हमें जो दिख रहा है वो नहीं सोचना है, बल्कि हमें वो सोचना है जो हम देखना चाहते हैं

  • इन दो महीनों में हमें वो सारी जानकारियां मिल गई जो हमें कोरोना से बचाव के लिए चाहिए थी

  • शब्दों पर एक-दूसरे को याद दिलाना आसान होता है

नवयुग टाइम्स, संवादाता।

लेखिका : ब्रह्माकुमारी शिवानी बहन, मोटीवेशनल स्पीकर एवं राजयोगा प्रशिक्षक, ब्रह्माकुमारीज
  • संकल्प से सिद्घि

हम सभी के जीवन में कोई न कोई समस्याएं होती है। अगर हम हमेशा यही सोचते रहेंगे कि इतनी बड़ी प्रॉब्लम है, ये प्रॉब्लम कभी ठीक होगी भी कि नहीं। इसका कोई सॉल्यूशन है भी यह नहीं। हम जितना इस प्रकार से सोचते जायेंगे वह प्राब्लम उतना ही अधिक बढ़ती जायेगी। मैं बीमार हूं, मेरा ब्लड प्रेशर हाई है, मेरा शुगर लेबल ठीक नहीं है। ऐसा हम सोचते भी जाते हैं और बोलते भी जाते हैं, वो ठीक तो होंगे नहीं लेकिन हो सकता है यह प्रॉब्लम थोड़ासा और बढ़ जायेगा। क्योंकि संकल्प से सिद्घि होती है। अगर आपके किसी रिश्ते में थोड़ी सी प्रॉब्लम है, आपको किसी के साथ प्रॉब्लम है तो हम वैसा ही सोचना शुरू कर देते हैं। पता नहीं क्या प्रॉब्लम है, पता नहीं इनको मुझसे क्या प्रॉब्लम है। मैं कितना भी कोशिश करूं ये रिश्ता तो ठीक होता ही नहीं है। पता नहीं आगे ठीक होगा भी या नहीं। ये सब हमारे थॉटस हैं और हम कहते हैं प्रॉब्लम है तो हम इसी के बारे में सोचेंगे ना। हम ऐसा सोच-सोच कर उस रिश्ते में और कॉनफ्लिक्ट पैदा कर रहे हैं।

  • आप स्वयं को और विश्व को कैसा देखना चाहते हैं

जबकि होना तो यह चाहिए कि जो दिख रहा है हमें वो नहीं सोचना है। हमें वो सोचना है जो हम देखना चाहते हैं। इसे आप जीवन के किसी भी सीन में एप्लाई कर देख सकते हैं। आप खुद को कैसे देखना चाहते हैं। आप अपने परिवार को कैसा देखना चाहते हैं। आप अपने देश को और पूरे विश्व को कैसा देखना चाहते हैं, वो सोचो और और उसे फैलाओ। एक की भी सोच उसके डेस्टिनी पर मैंनेफेस्ट होती है। सारा विश्व सोचेगा तो विश्व की डेस्टिनी चेंज हो जायेगी। इस समय हमारे पास पावर है हम अपनी डेस्टिनी, अपने परिवार की डेस्टिनी, फिर सबके साथ शेयर करके हम बहुतों की डेस्टिनी पर प्रभाव डाल सकते हैं।

  • इस समय हमें सोचना क्या है और हम सोच क्या रहे हैं…?

इस समय हम स्वयं को स्वस्थ देखना चाहते हैं। लेकिन हम सोच क्या रहे हैं? कहीं मुझे ना हो जाए। हम सोच रहे हैं मैं ये करूं तो मुझे ना हो जाए। मैं इस चीज को हाथ लगाऊं तो मुझे ना हो जाए। हाथ नहीं लगाना है बचना है लेकिन हाथ नहीं लगाते समय ये नहीं सोचना है कि मुझे न हो जाये। जो एक्शन हम कर रहे हैं और जो सोच हम क्रियेट कर रहे हैं ये दोनों अलग-अलग चीजें है। हाथ आज हम कोई पहली बार नहीं धो रहे हैं। हम रोज बहुत बार हाथ धोते हैं। दो-तीन बार ज्यादा धो रहे होंगे इस टाइम। अब हर रोज आप हाथ क्यूं धोते है? इन्फेक्शन, डर और बीमारियों से बचने के लिए धोते हैं। लेकिन जब हम रोज हाथ धोते हैं तो हम यह नहीं सोचते हैं कि कहीं मैं बीमार न हो जाऊं, कहीं मुझे वायरस न हो जाए, कहीं मुझसे किसी और को न हो जाए। हमें ये सोचना है मैं पूरी तरह से स्वस्थ हूं, हेल्दी हूं और अपने हाथ को धो रहा हूं। हाथ धोते समय हम ये भी नहीं सोचते हैं कि मैं हाथ धो रहा हूं। वास्तव में तो हम कुछ और ही सोचते-सोचते हाथ धो लेते हैं। लेकिन इस समय हम वो रिपीटेट थॉट क्रियेट कर रहे हैं। जो हम एक्शन कर रहे हैं और जो हम थॉट क्रियेट कर रहे हैं दोनों के बारे क्लीयरिटी है। अब हमें एक्शन के बारे में क्लीयरिटी आ गई है कि किधर धोना है, कैसे बैठना है, अंदर गए तो सैनेटाइज करना है। कमरे से बाहर आए तो सेनेटाइज करना है। ट्रेन में बैठे तो कैसे बैठना है।

लेखिका : ब्रह्माकुमारी शिवानी बहन, वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका, ब्रह्माकुमारीज
  • अब फुलस्टॉप लगाओ, कुछ दूसरी बात करो…

इस दो महीने में हमें वो सारी जानकारियां मिल गई जो हमें चाहिए थी। अब सोचना कैसे है, बाहर शायद हमें कोई नहीं बताएगा। वो हमें खुद अपने लिए करना होगा कि मुझे सोचना कैसे है। कई बार हमें अपने थॉटस को चेंज करना उतना ईजी नहीं होता है। लेकिन अपने शब्दों को चेंज करना सरल होता है। अभी हम तुरंत ही अपने अंदर नहीं कर पायेंगे इसलिए हम पहले बाहर चेंज करते हैं। क्योंकि शब्दों पर अपने को याद दिलाना, एक-दूसरे को याद दिलाना आसान होता है। जैसे हम एक-दूसरे से कुछ बात करते हैं तो सामने वाला कहता है बस, हमने आपको सुन लिए अब फुलस्टॉप लगाओ, कुछ दूसरी बात करो। जैसे कोई किसी के बारे में अलोचना कर रहा है तो कहते हैं उसको छोड़ों ना क्यों उसके बारे में बात कर रहे हैं। कुछ दूसरी बात करो। हमें ये बात नहीं करना है कि यह इतना फैल गया है और फैलेगा। तीन महीने तक तो और फैल जायेगा। इतने लोग बीमार हो गए हैं। अभी और इतने बीमार होंगे। ये कैलकुलेट करना उनका रोल है जो हेल्थ केयर प्रोफेशनल हैं, सरकार के अधिकारी हैं। हमारा रोल है वो सोचना जिससे ये आंकड़े घटे। उसी आंकड़े को बार-बार रिपीट करने से और एक-दूसरे को सुनाने से संकल्प से सिद्घि हो जाती है और ये स्टैटिक्स बढ़ेंगे। हमें स्टैटिक्स को कम करना है। उसके लिए हमें स्टैटिक्स को पहले अपने मन में और बोल में कम करना पड़ेगा। तब जाकर के वो वहां कम होगा।
(लेखिका के ये अपने विचार हैं।)

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