
ब्रह्माकुमारी संस्था 140 देशों और भारत में स्थित हजारों सेवाकेंद्रों के माध्यम से भारतीय दैवी संस्कृति और सभ्यता का पताका पूरे विश्व में फहरा रही है। यह संस्था सर्व मनुष्य मात्र का जीवन मूल्यनिष्ठ और व्यसन मुक्त बनाने की दिशा में अग्रसर है। संस्था को आज आप जिस स्वरूप में देख रहे हैं उसका प्रारंभ आज से लगभग 83 वर्ष पूर्व एक छोटे से घर से हुआ था। जहां हीरे के प्रसिद्घ जौहरी दादा लेखराज रहा करते थे। वे प्रारंभ से ही सात्विक और धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। उन्होंने अपने जीवन में अनेक धर्मग्रंथों का बारीकी से अध्ययन किया और इसके लिए उन्होंने अनेक गुरू भी किए। इतना ही नहीं वे अवकाश के दिनों में अक्सर सत्संग का आयोजन किया करते थे और ओम की ध्वनि लगवाते थे। उनके मुख द्वारा ओम शब्द का उच्चारण होतेे ही पूरा वातावरण एक अलौकिक वायुमण्डल से भर उठता था। उस वायुमण्डल की परिधि में जो भी बैठे होते थे वे अपने शरीर के भान से परे होकर आत्मिक स्थिति में स्थित हो जाते थे। उन्हें एक अलग प्रकार के सुख की अनुभूति होने लगती थी। जिससे दादा स्वयं भी अंजान थे और लोगों को पता ही नहीं चलता था कि आखिर ये हो क्या रहा है। इसलिए संस्था को पहले ओम मंडली के नाम से जाना जाता था। विधि के विधान अनुसार कहा जाता है कि जब एक दिन दादा लेखराज सत्संग में बैठे थे तो उन्हें एक अलग प्रकार की अनुभूति होने लगी, जिसे वे समझ नहीं पाए और सत्संग से उठकर अपने कमरे की ओर चले गए। उन्हें इस प्रकार सत्संग से अचानक उठता देख लोग उनके पीछे-पीछे कमरे तक गए लेकिन वहां का दृश्य तो अकल्पनीए था। परमात्मा निराकार शिव उनके तन का आधार लेकर स्वयं का परिचय दे रहे थे। जिसे सुनकर लोग आश्चर्य चकित रह गए कि ये प्रभू की कैसी लीला है। तत्पश्चा परमात्मा शिव ने दादा लेखराज का नाम बदलकर ब्रह्मा रखा जो आगे चलकर प्रजापिता ब्रह्मा बाबा के नाम से मशहुर हुए। इस घटना के बाद तो हर कोई दादा लेखराज को भूल ही गए, उन्हें याद रहा तो सिर्फ प्रजापिता ब्रह्मा। यह इतिहास की वह महान घड़ी है जब नए युग की स्थापना के लिए परमात्मा शिव ने दादा के तन का आधार लिया।
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