हाइलाइट्स :-
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हर स्त्री में दुर्गा है, इसलिए एक आम स्त्री भी देवी की तरह रूप बदलकर अनेक भूमिकाएं निभाती है
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दुर्गा प्राणियों की शक्ति है और परिवर्तन की प्रेरक भी
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ये नौ दिन अपने अंदर की नकारात्मकता को समाप्त करने के लिए भी है
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अशुद्घ विचारों और आदतों का करें उपवास, बेहतर जिंदगी की सोच अपनाएं
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नौ दिन रखे जाने वाले व्रत आत्मा की शुद्घता और पवित्रता के लिए
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व्रत रखने के साथ-साथ अपनी सोच, व्यवहार, आदतों और संस्कारों में भी बदलाव लाएं
अध्यात्म/नई राहें। इस वर्ष वैश्विक महामारी के मद्देनजर सारी दुनिया पर इसका असर पड़ा हैं। त्योहार और सामाजिक-धार्मिक जीवन पर भी इसके तात्कालिक प्रभाव देखने को मिल रहा है। ऐसे में हमारी आस्था संबंधी विधानों में थोड़ा बहुत तो अंतर भी आएगा। हमारा विश्वास है कि देवी दुर्गा इस संकट की घड़ी में हमें अपने बुराईयों और विचार दोनों को शुद्घ करने की शक्ति देगी। हम सभी जानते हैं कि नवरात्र एक ऐसा पर्व है जो साल में तीन बार मनाया जाता है। इसमें चैत्र नवरात्र, शारदीय नवरात्र और गुप्त नवरात्र शामिल है। धार्मिक महत्व की दृष्टि से शारदीय नवरात्र को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है।
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हर स्त्री दुर्गा का रूप है…
देवी की आठ भुजाएं और उनमें सुशोभित अस्त्र-शस्त्र बुराइयों पर विजय पाने का प्रतीक है। आज हमारे समाज में स्त्रियां बहुआयामी कर्तव्य और दायित्वों को जिम्मेवारी पूर्वक निर्वहन रही है। इससे स्पष्ट है कि स्त्री अस्मिता के प्रतीक के रूप में देवी की आराधना धार्मिक दृष्टि से ही नहीं अपितु सामाजिक दृष्टि से भी तर्कसंगत है। देवी जब-जब अपना रूप बदलती है तो परिवर्तन के लिए प्रेरित करती है। उसी प्रकार स्त्रियां भी उन्हीं देवियों का स्वरूप है। जब-जब उन्होंने अपना रूप बदला है तब-तब मानव को परिवर्तन के लिए प्रेरित किया है। इतिहास में इसके कई उदाहरण मौजुद है। जिसे हमें समझना और सम्मान देना होगा। नवरात्रि का त्यौहार हमें जीवन में परिवर्तन के लिए प्रेरित करती है।
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नवरात्रि में रखे जाने वाले व्रत आत्मा की शुद्घता और पवित्रता के लिए है…
नवरात्रि में माता रानी के प्रति आस्था रखने और उन्हें प्रसन्न करने के लिए लोग नौ दिन का व्रत रखते हैं। माना इन नौ दिनों में रखे जाने वाले व्रत हमारी आत्मा की शुद्घता और पवित्रता के लिए होते हैं। व्रत रखने के साथ-साथ हमें अपनी सोच, व्यवहार, आदतों और संस्कारों में भी बदलाव लाने की आवश्यकता होती है। खुद को बेहतर बनाने और आपसी रिश्तों में मधुरता सामंजस्य व मजबूती लाने के लिए यह बदलाव लाना बहुत जरूरी होता है।
क्यों न हम खुद को बेहतर बनाने और आपसी रिश्तों में मधुरता लाने के लिए ये नौ दिन अपने जीवन में बदलाव लाएं –
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क्रोध पर नियंत्रण करें…
संस्कृत का एक श्लोक है –
क्रोधाद्वति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्वुद्घिनाशो बुद्घिनाशात्प्रणश्यति।।
मतलब क्रोध से मनुष्य की स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्घि नष्ट हो जाती है और बुद्घि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही नाश कर बैठता है। जब मनुष्य को क्रोध आता है तब वह लोगों से बुरी तरह से पेश आता है। जिससे आपसी रिश्ते खराब हो जाते हैं। इसलिए हमें क्रोध के वश होकर ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे नुकसान हो।
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भाषा पर रखें नियंत्रण…
भाषा हमारे मन, विचार और व्यवहार से जुड़ी होती है। जैसा हम सोचते हैं वैसी बातें हमारे मन में रहती है, फिर वही बातें हमारे मुख से निकलती है। जिससे हमारी छवि बिगड़ती ही है साथ ही खुशी और त्योहार का महौल भी अभ्रद भाषा के प्रयोग से खराब हो जाता है। जिसका परिणाम हमें रिश्तों में तनाव और टकराव के रूप में देखने को मिलता है। इसलिए सदा मधुर भाषा का प्रयोग करें और शांत रहने का प्रयास करेंं।
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झगड़े से दूर रहें…
गुस्से से बोलने और बहस करने से मामले सुलझते नहीं है बल्कि और ही उलझते हैं। गलती चाहे किसी की भी हो बहस करने के बजाए माफी मांगकर बात खत्म करने का प्रयास करना चाहिए। किसी से भी लम्बे समय तक मन-मुटाव न रखें और न ही बहस करें।
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इन आदतों से दूर रहें
ऐसा लगता है कि आपके अंदर कुछ गलत आदतें हैं जैसे कि जिद करना, लापरवाही से काम करना, किसी काम को टालना, रिसपेक्ट नहीं देना, ठीक ढंग से बात नहीं करना,आदि ऐसी आदतें हैं जो हमें दूसरों की नजरों में गिरा देती है। कई बार इसका प्रभाव हमारे पारिवारिक जीवन पर भी पड़ता है। इसलिए हमें इन आदतों से दूर रहना चाहिए और विशेषताओं को जीवन में अपनाना चाहिए।
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दूसरों से अपनी तुलना न करें
यदि आप किसी कार्य में दूसरे से बेहतर हैं तो इस पर गर्व कीजिए लेकिन अभिमान नहीं। इससे दूरी बनाने के लिए सर्वप्रथम हमें दूसरों से अपनी तुलना करनी बंद कर देनी चाहिए। किसी भी व्यक्ति के अंदर अहंकार तभी आता है जब वह अपने आपको दूसरों से श्रेष्ठ समझने लगता है।
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मन में कोई बात न रखें
हमें मन में कोई भी बात दबाकर नहीं रखनी चाहिए। इसका सीधा प्रभाव हमारे दिमाग पर पड़ता है। जिससे मन में तनाव होने लगता है। जो लोग स्पष्ट शब्दों में अपनी बात को रखते हैं, असल मयाने में उनका मन साफ होता है। भले ही कुछ समय के लिए हमें उनकी बात बुरी लगेगी लेकिन इससे हमारा मन हल्का रहेगा।