हाइलाइट्स :-
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दादी जी की स्मृति दिवस के अवसर पर विशेष प्रस्तुति
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स्वयं भगवान ने अपनी दिव्य दृष्टि देकर वरदान दिया था
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इन्हीं वरदानों के फलस्वरूप मुझे नये विश्व के आधार स्तम्भ त्रिमुर्ति दादियां की सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ
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दादियों की पालना ऐसी थी कि निर्बल आत्मा को भी दैवी दुनिया में उच्च पद की अधिकारी बना देती थी
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दादी जी की पावरफुल दृष्टि अनहोनी को भी टाल देती थी
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दादियों के सानिध्य में रहकर मैंने अध्यात्म के मर्म को समझा
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अमृतवेले से लेकर रात्रि तक दादी इतना प्यार लुटाती थी कि मैं अपने आपको पद्म-पद्म भाग्यशाली आत्मा समझती थी
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दादी जी अपने मधुर मुस्कान, दिव्य दृष्टि और प्यार भरे मीठे बोल से सबका दिल जीत लेती थी
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दादीजी पहली मुलाकात में ही इतना प्यार और अपनापन देती थी कि उसे हर कोई दादी माँ कहता था
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हमारे मन में अंदर ही अंदर गूंजता रहता है वाह बाबा…. वाह…। वाह दादी जी वाह…
नवयुग टाइम्स, संवादाता, आबू रोड
यह मेरा परमसौभाग्य और पुण्य कर्म का फल था जो प्यारे बाबा ने मुझे कई प्रकार के वरदानों से भरपूर किया है। उसमें से एक वरदान था जिसे मैं कभी नहीं भूल सकती हूं और वह था – “बच्ची आप सदा खुश रहना।” हमेशा यह याद रखना – “मैं बापदादा के गले का हार हूँ।” जब-जब मैं इन वरदानों को याद करती हूँ तो हमारा मन खुशी से नाचने लगता है कि स्वयं भगवान ने मुझे अपनी दिव्य दृष्टि देकर मेरा हाथ पकड़कर यह वरदान दिया था। इन्हीं वरदानों के फलस्वरूप मुझे नये विश्व के आधार स्तम्भ त्रिमुर्ति दादियां की सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ। और यही से प्रारंभ हुआ हमारे जीवन की आध्यात्मिक यात्रा। दादियों के सानिध्य में रहकर मैंने अध्यात्म के मर्म को समझा। दादियों की पालना ऐसी थी कि जो मुझे कभी भी अपने लौकिक घर की याद न आने दी। दादियों की विशेषताएं ऐसी थी जो किसी के भी जीवन को बदल सकती थी। उनकी प्रेरणाएं ऐसी थी कि जो निर्बल आत्मा को भी दैवी दुनिया में उच्च पद की अधिकारी बना देती थी। हमारी दादी माँ में इतनी विशेषताएं थी कि उसका वर्णन करना असम्भव है।
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मेरा जीवन धन्य-धन्य हो गया…
अमृतवेले से लेकर रात्रि तक वो इतना प्यार लुटाती थी कि मैं आज तक अपने आप को पद्मापद्म परम सौभाग्यशाली आत्मा महसूस करती हूँ। मुझे याद आता है दादी जी को जब भी कुछ खाने को देती थी तो वो खुद खाने से पहले मुझे खिलाती थी। रात्रि में केसर वाला दूध थोड़ासा बचाकर रखती और अपने हाथों से प्यार से पिलाती और कहती – अच्छा लगा… मैं तो इतना खुश हो जाती थी दिल से निकलता था वाह! दादीजी वाह! मेरा जीवन दादी जी का अमिट प्यार पाकर धन्य-धन्य हो गया।
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दादी जी सबको समा लेती थी…
वास्तव में दादी जी जगत की माँ थी जो अपने विशाल हृदय में सभी को समा लेती थी। दादी माँ की छत्रछाया में अलौकिक पालना में पलते हुए दिन-रात, मास-वर्ष ऐसे बीत गए जैसे की सेकेण्ड। आज भी वो घड़ियां स्वप्नवत सी प्रतीत होती है। दादीजी पूरे दिन में 5 बार मुरली पढ़ते थे और मुरली का स्वरूप बन सदा यही करती थी कि जैसा बाबा हमें बनाना चाहता है। वो सबूत बनके दिखाना है। वे सदा परमात्मा की याद में लवलीन रहती थी और बेहद सेवा को सामने रखकर सर्व का सहयोग लेती और देती थी। वें बाबा की हर आज्ञा का पालन करते-करते दादी जी बाप समान बन सबकी प्रेरणास्रोत बन गयी।
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कल्प पहले की स्मृति पक्का करा देती थीं…
दादी जी से जब डबल विदेशी भाई-बहनें मिलने आते थे। तब दादी जी अपने मधुर मुस्कान, दिव्य दृष्टि और प्यार भरे मीठे बोल से उनका दिल जीत लेती थी। वे पहली मुलाकात में ही इतना अपनापन और प्यार देती थी कि उसे हर कोई दादी माँ कहता था। तब डबल विदेशी भाई-बहनें कहते थे कि दादी जी आप हमें अपने पास ही रख लो। हम बाबा के पास रहकर आपके पालना में यही रहना चाहते हैं। तब दादी जी उन्हें कहती थी कि आप तो यही के (भारत) ही हो। बाबा ने इस अंतिम जन्म में ईश्वरीय सेवा अर्थ आप लोगों को भिन्न-भिन्न स्थानों पर भेजा है। दादी जी का ईश्वरीय प्रेम और कल्प पहले की स्मृति पक्की कराने की विधि बड़ी ही प्रभावशाली होती थी। ऐसा बोलकर दादीजी सभी में इतना प्यार और अपनापन भर देती थी कि उन्हें भी यही संकल्प चलते थे कि हम वही कल्प पहले वाली आत्मा हैं।
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वह दिन आज भी याद है…
जीवन में कई ऐसे अनुभव होते हैं। जिसको हम भूलना भी चाहे तो भूल नहीं सकते हैं। ऐसा ही एक घटना हमारे सामने घटी। यह घटना कई वर्ष पुरानी है। जूनागढ़ से बीके दम्यन्ती दीदी, दादी जी से मिलने आये थे। उनके साथ 6 बहनें और एक भाई था। एकाउण्ट का ऑडिट कराने आये थे और यह पूरा करके अब रिटर्न (जूनागढ़) जाना था। उस समय मैं दादीजी की सेवा में दादी कॉटेज में ही थी। जब वह आये तब मुन्नी दीदी जी ने कहा कि आओ दादीजी से मिल लो। जैसे ही वो टीचर्स बहनें दादी जी के सामने बैठे तो दादी जी ने उन्हें बहुत शक्तिशाली दृष्टि देते हुए सभी को फल दिया और कहा कि जाने से पहले आप सभी बहनें मेरे बाबा के कमरे में जाओ और ब्ाबा से दृष्टि लेकर आओ। जब वह बाबा के कमरे से बाहर आये तो दादी जी ने मेरा हाथ पकड़कर दादी कॉटेज से बाहर आएं। तब उन टीचर्स बहनों ने कहा – अच्छा दादी जी हम निकलते हैं। फिर दादी जी उन सभी टीचर्स बहनों को खड़े-खड़े ही दृष्टि दी, उसी समय कोई वीआईपी दादी जी से मिलने के लिए आये थे तो दादी जी ने कहा उन्हें बिठाओ मैं थोड़ी देर में आती हूँ। फिर दादी जी ने बड़ी टीचर्स बहन का हाथ पकड़ा और पूछने लगी आप बहनें किस गाड़ी में जा रही हो? तब दादी गाड़ी के पास खड़े होकर बहुत देर तक दृष्टि देने लगी और कहा कि जूनागढ़ पहुंचते ही मुझे फोन करना। दम्यन्ती दीदी ने कहा दादी हम तो रात में 2ः30 बजे पहुंचेंगे। फिर भी दादी जी ने कहा पहुंचते ही फोन करना। जैसे माँ अपने बच्चों को विदा करती हैं उसी तरह से दादी ने सभी को विदा किया। जब वे जूनागढ़ से मात्र 9 किलोमीटर की दूरी पर थे तब अचानक से गाड़ी गड्ढ़े में गिर गयी और पेड़ से जाकर टकरा गई। जिसके कारण गाड़ी को काफी नुकसान हुआ। सभी ने अन्दर से धक्का लगाकर दरवाजा खोला और हम सभी एक-एक करके बाहर निकले। सबसे पहले दादी को फोन किया उसके बाद अपने सेंटर पर फोन किया। तब तक सेंटर के भाई पहुंच गए। किसी को कुछ नहीं हुआ। कार को जब कम्पनी में ले गए तब कार की स्थिति देखकर कम्पनी वालों ने कहा कि कितने लोग मर गए, इनमें से कोई भी जिंदा नहीं बचा होगा। जब उसे यह मालूम हुआ कि किसी को भी जरा सी भी चोंट नहीं आई, तो यह सुनकर वह हैरान हो गया। तो यह थी हमारी प्यारी दादी जी की दृष्टि की शक्ति, जो सर्वशक्तिवान बाप को साथ रखकर हम सभी का बचाव किया।
ऐसी थी हमारी प्यारी दादी जी की कमाल अंदर ही अंदर गूंजता रहता है। वाह बाबा…. वाह…। वाह दादी जी वाह!
नोट – यह लेखिका के अपने विचार हैं।