हाइलाइट्स :-
-
दादी जी के 14 वीं पुण्य तिथि के अवसर पर विशेष प्रकाशन
-
वात्सल्य, करूणा और स्नेह की देवी थी दादी प्रकाशमणि जी
-
जब भी डॉक्टर दादीजी से पूछते थे कि दादी जी आप कैसे हैं? तो दादी जी हमेशा की तरह मुस्कराते हुए जवाब देती थी कि मैं तो ठीक हूँ आप अपना समाचार सुनाओ
-
आश्चर्य तो तब होता था जब उनके चेहरे पर किसी भी बीमारी के लक्षण दिखाई नहीं देते थे
-
दादी ने अपना हाथ मेरे हाथ में देते हुए मुझे बहुत प्यार भरी दृष्टि दी
-
मुझे मालूम नहीं था कि दादी जी से यह मेरी अन्तिम मुलाकात है
-
जब भी मैं गाड़ी चलाने के लिए हाथ स्टेयरिंग पर रखता हूँ तो बापदादा का दिया हुआ वरदान सहज ही हमारी स्मृति में आ जाता है
नवयुग टाइम्स, संवादाता 25/08/2021
मैं 14 वर्ष की किशोरावस्था में इस ईश्वरीय विश्व विद्यालय के सम्पर्क में आया। जब मैं दादी प्रकाशमणि जी से पहली बार मिला तो बस मैं उन्हें एकटक देखता ही रह गया। ऐसी वात्सल्य, करूणा और स्नेह की देवी मैंने पहले कभी नहीं देखी थी। वे सच में एक चैतन्य देवी के समान ही थी जिनके हर बोल में चुम्बकीय आकर्षण और प्रेरणा भरा हुआ था। जो मुझे अपनी ओर खींच रहा था। मैंने बाबा को साकार में तो नहीं देखा लेकिन मैं अपने अनुभव से कह सकता हूँ कि भगवान के सारे गुण दादी में समाए हुए थे। ऐसे सम्पूर्ण व्यक्तित्व की धनी थी दादी प्रकाशमणि जी। तभी मैंने यह निश्चय कर लिया कि मुझे अपना जीवन ईश्वरीय सेवार्थ समर्पित करना है। ताकि मैं भी उनके जैसा बनकर, अनेकों को उनके जैसा बना सकूं।
-
इसके साथ ही याद आ जाता है वो प्यार और स्नेह
उन दिनों यज्ञ में एक ही गाड़ी हुआ करती थी। जिसमें लोग आते-जाते थे। यह तो मेरा सौभाग्य था कि मधुबन में मुझे गाड़ी चलाने की सेवा मिली। लेकिन यह सेवा मुझे दादियों और वरिष्ठ भाई-बहनों के इतना समीप ले आएगी यह मुझे मालूम नहीं था। दादी जी के अंतिम 14 वर्षों तक मैंने दादी जी की गाड़ी चलाने की सेवा की। अव्यक्त बापदादा से जब मैं मिला तो बाबा ने मुझे वरदान देते हुए कहा कि – सभी दादियों की जिंदगी आपके हाथ में है। जब भी गाड़ी चलाते समय हाथ स्टेयरिंग पर रखना तो यही स्मृति रखना कि मैं नहीं, बाबा गाड़ी चला रहा है। यह हमारे जीवन का अविस्मरणीय पल था। जिसे मैं आज तक भूल नहीं पाया हूँ। आज भी जब भी मैं गाड़ी चलाने के लिए हाथ स्टेयरिंग पर रखता हूँ तो बापदादा का दिया हुआ यह वरदान सहज ही हमारी स्मृति में आ जाता है। इसके साथ ही याद आ जाती है वात्सल्य की धनी दादी माँ का वो प्यार और स्नेह जो मुझे मिला था।
-
ऐसी निर्मल थी हमारी प्यारी दादी
दादी जी का अपना एक अलग व्यक्तित्व था। जिसके कारण वो सबसे अलग नजर आती थी। उनकी पवित्रता, शांत व निर्मल स्वभाव सबको अपनी ओर आकर्षित कर लेता था। वह सदा स्वमान में रहकर सबको सम्मान देती थी। दादीजी जब भी गाड़ी में बैठकर चक्कर लगाने निकलती थी तो सभी भाई-बहनों को हाथ हिलाकर अभिवादन करती थी। जब भी समय मिलता था तो दादी गाड़ी रूकवाकर वहीं पर हाल समाचार पूछ लेती थीं। ऐसी निर्मल थी हमारी प्यारी दादी, जिनकी कमी आज तक मुझे महसूस होती है।
-
जीवन की अनमोल शिक्षा मिली
एक बार मैंने दादी जी से कहा – दादी जी, आप संस्था की मुख्य प्रशासिका हो फिर भी आप लोगों के सामने हाथ जोड़कर, सर झूकाकर उनका अभिवादन क्यों करते हो। इस पर दादी माँ ने मुझे जीवन की वो अनमोल शिक्षा दी जो मेरी विचारधारा को ही परिवर्तित कर दिया। उन्होंने बहुत ही प्यार से कहा – प्रकाश, झुकना सीखो, आप झुकेंगे तो सामने वाला अपने आप झुकेगा। झुकना ही झुकाना है। ऐसी दादी माँ की छोटी-छोटी बातों ने मुझे अध्यात्म के शिखर पर पहुंचा दिया।
-
सबके दिलों की आश पूरी करती थी
हमें याद है कि दादी कुछ वीआईपीज के साथ मीटिंग में व्यस्त थी। तभी एक माता सीधे दादी जी के पास आई और इशारे से दादी को किनारे आने के लिए कहा। दादी जी तुरंत उन वीआईपीज से क्षमा मांगते हुए उस माता के साथ किनारे आ गई और उससे पूछा, माताजी क्या बात है? तब वह माता बोली कि मुझे आपके साथ फोटो खिंचवाना है। उस माता को इस बात का जरा सा भी अंदाज नहीं था कि दादी जी का यह कितना अमूल्य समय है। तो हमने उस माता को बाद में आने के लिए कहा तो दादी जी ने कहा यह कितनी दूर से आई है, पता नहीं इसे फिर मौका मिले या न मिले, इसे अभी फोटो लेने दो। ऐसी महान और सबके दिलों की आश पूरी करने वाली दादी यज्ञ-वत्सों के दिलों की धड़कन थी।
-
बाबा के रूप में दादी जी आज भी मेरा पथ- प्रदर्शन कर रही हैं
कुछ समय से दादी जी का स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा था परन्तु आश्चर्य तो तब होता था जब उनके चेहरे पर किसी भी बीमारी के लक्षण दिखाई नहीं देते थे। जब भी डॉक्टर दादीजी से पूछते थे कि दादी जी आप कैसे हैं? तो दादी जी हमेशा की तरह मुस्कराते हुए जवाब देती थी कि मैं तो ठीक हूँ आप अपना समाचार सुनाओ। 21अगस्त 2007 को जब मैं दादी जी से मिलने के लिए उनके कमरे में गया तो म्ाझे यह मालूम नहीं था कि दादी जी के साथ यह मेरी अन्तिम मुलाकात है। डॉ.सतीश गुप्ता ने दादी जी को कहा दादी देखो आपसे कौन मिलने आया है। तो दादी ने धीरे-धीरे आँखें खोली और मुझे दृष्टि देते हुए अपने समीप आने का इशारा किया। जब मैं दादी के समीप पहुंचा तो दादी ने अपना हाथ मेरे हाथ में देते हुए मुझे बहुत प्यार भरी दृष्टि दी। मैंने पूछा दादी जी आप कैसे हैं? तो दादी हर रोज की तरह कंधा हिलाकर इशारे से कहा मैं ठीक हूँ। उसके बाद उन्होंने आँखे बंद कर ली। दादी से यह मेरी अन्तिम मुलाकात थी। उसके बाद मैं दादीजी से कभी नहीं मिल पाया। आज भी मुझे यही आभास होता है कि बाबा के रूप में दादी जी आज भी मेरा पहले की तरह मार्गदर्शक बनकर मेरा पथ-प्रदर्शन कर रही हैं।
नोट – यह लेखक के अपने विचार हैं।