हाइलाइट्स :-
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दादी ने कहा – यह कार्य स्वयं भगवान का है, वही इस संस्था का हेड है
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वीआईपीज ने कहा – दादी जी हम आपकी महानताओं को शत-शत नमन करते हैं
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( यह लेख दादी प्रकाशमणि जी के अंग-संग रही बीके कविता बहन की स्मृतियों पर आधारित है।)
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दादी जी के स्मृति दिवस पर नवयुग टाइम्स का ब्रह्माकुमारी संस्था से विशेष प्रकाशन

इतनी बड़ी संस्था का कुशल प्रशासन करते हुए दादी जी के चेहरे पर सदा प्रसन्नता और हल्कापन दिखाई देता था। हमें आज भी वह घटना याद है कि एक बार एक बहन किसी वीआईपीज को लेकर महासम्मेलन में आई थी। उस सम्मेलन में दादी जी ने अपने प्रभावशाली व्यक्तव्य से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया था। उसी भाषण से प्रभावित होकर उस वीआईपी को दादी जी से मिलने का संकल्प आया। जब निमित टीचर बहन उसे लेकर दादी कॉटेज में आई तब दादी ने बड़े ही स्नेह भाव से उनका स्वागत किया। उस वीआईपी ने कहा कि दादीजी हम जब अपने कार्य व्यवहार में इतना बिजी हो जाते हैं तो हमें इतना तनाव, हेडक, चिड़चिड़ापन और फिर कभी-कभी आपस में टकराव भी हो जाता है। लेकिन जब से मैं यहां आया हूं तब से मैं देख रहा हूं की यहां सभी बड़े प्यार से मुस्करा कर अपनी सेवा कर रहे हैं। और आप इतनी बड़ी संस्था की हेड हो तो क्या आपको कभी टेंशन नहीं होता?
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स्वयं को ट्रस्टी समझकर कार्य करेंगे…
तब दादी जी ने बहुत प्यार और मधुर मुस्कान से उनको दृष्टि देते हुए कहा कि मुझे कभी भी टेंशन नहीं होता है, क्योंकि मैं स्वयं को हेड मानती ही नहीं हूं। फिर दादी जी ने बड़ी सरलता से कहा हमारे संस्था का हेड परमपिता परमात्मा शिव है। मैं तो बस ट्रस्टी हूं। यह कार्य स्वयं भगवान का है। वही करनकरावनहार है। वही सारा कुछ संभाल रहा है। जब सारे लोगों ने उनकी बातें सुनी तो उनको बड़ा ही आश्चर्य हुआ और कहा कि दादी जी हम आपकी महानताओं को शत-शत नमन करते हैं। अब हम भी अपने आपको ट्रस्टी समझ कर ही कार्य करेंगे। हम यहां से यही सीखकर जा रहे हैं।
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जीवन परिवर्तन से लोगों को मिली प्रेरणा…
कुछ महीनों के बाद जब वह टीचर बहन आई और कहा, दादी जी आपसे मिलने के बाद उन सभी के जीवन में बहुत परिवर्तन आया और वह सभी बाबा के घर में परिवार के साथ आते हैं। उनके जीवन में परिवर्तन देख और भी लोगों को प्रेरणा मिल रही है। ऐसी हमारी दादी मां जो स्वयं भी हल्का रहती और दूसरों को भी हल्का कर देती थी।
नोट :- यह लेखिका के अपने विचार हैं।
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दादी जी की पुरानी यादों से