
परमात्मा जब इस सृष्टि पर अवतरित हुए और ज्ञान दिया तो उन्होंने कहा – कलियुग का अंतिम सीन देखना आसान होने वाला नहीं है। अब कलियुग का अंतिम सीन मतलब ये नहीं जो बाहर हो रहा है। कलियुग का अंतिम सीन मतलब कलियुग की अंतिम वायब्रेशन के प्रभाव से खुद को बचाना आसान नहीं होगा। जब उसके वायब्रेशन हवा में भी है, हमारे घर में कोई है उनके अंदर डर और चिंता है तो हमारी घर की हवा में भी है और उसका प्रभाव हम पर न पड़े उसके लिए हमारी अंतरात्मा की इम्यूनिटी स्ट्रांग नहीं बल्कि परफेक्ट होना चाहिए। ये भी एक तरह की एपिडेमिक है। एक मिनट के लिए भी मास्क उतारो तो पता नहीं चलेगा और हो जाएगा। मतलब थोड़ासा भी अटेंशन छोड़ा, पुरूषार्थ में थोड़ासा भी ढीलापन आया तो फिर किसी की इंफेक्शन कैच हो जाएगी। तो अपनी सारा दिन की सोच की चेकिंग करनी पड़ेगी कि मेरी सोच में कौनसी इंफेक्शन है। जिसकी सफाई करने की जरूरत है। जिस तरह से शरीर में टॉक्सीन जमा होते हैं उसी प्रकार से मन में भी जमा होता है।
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एक सेकण्ड भी व्यर्थ नहीं गंवाना…
जब शुरू-शुरू में एक्यूमुलेट होना शुरू होता है तो पता ही नहीं चलता है कि वो टॉक्सीन है। लेकिन जब वो एक्यूमेलेट होते-होते एक बीमारी का रूप ले लेता है तब हमें पता चलता है। ऐसे से मन में कुछ संकल्प चल रहे हैं कुछ आ रहा है, कुछ सोच रहे हैं, कुछ बोल रहे हैं, कुछ कर रहे हैं, कोई बात नहीं, दो मिनट ही किया। इसीलिए परमात्मा कहते हैं एक सेकण्ड भी व्यर्थ नहीं गंवाना। अगर एक सेकण्ड गंवाया तो बहुत कुछ गंवा दिया। हम कहते हैं एक सेकण्ड भी वेस्ट थॉट नहीं आनी चाहिए। क्योंकि वो एक सेकण्ड भी मास्क नीचे किया तो इंफेक्शन सामने खड़ी है। इसीलिए भगवान अंडरलाइन कराता है एक सेकण्ड की भी मार्जिन नहीं है। तो उसके लिए हमारी स्थिति पर फोकस कितना होना चाहिए।