ब्रह्माकुमारीज परिवार में शोक की लहर

हाईलाइट्स:

  • 86 वर्षीय ब्रह्माकुमारीज़ के महासचिव राजयोगी निर्वैर भाई का आकस्मिक निधन

  • कुछ समय से चल रहे थे अस्वस्थ, 19 सितम्बर को अहमदाबाद के अपोलो हॉस्पिटल में ली अंतिम श्वांस

  • 22 सितंबर सुबह 10 बजे आबू रोड के मुक्तिधाम में होगा अंतिम संस्कार

  • 20 नवम्बर 1938 को अकाली परिवार में हुआ था उनका जन्म

  • 19 सितम्बर 2024 को हुआ उनका आकस्मिक निधन

  • 55 साल से संस्थान में समर्पित रूप से दे रहे थे सेवाएं

  • नौ साल तक भारतीय नौसेना में दी सेवा

नवयुग टाइम्स, संवादाता, राजस्थान 20/09/24

आबू रोड, राजस्थान। ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान के महासचिव राजयोगी बीके निर्वैर भाई अहमदाबाद के अपोलो हॉस्पिटल में गुरुवार रात 11.30 बजे अंतिम श्वांस ली। वे कुछ समय से अस्वस्थ थे। उनके उनके आकस्मिक निधन से ब्रह्माकुमारीज़ परिवार में शोक की लहर है। देश-विदेश में स्थित सेवाकेंद्रों पर ध्यान-साधना का दौर चल रहा है। उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए मुख्यालय शांतिवन के कॉन्फ्रेंस हॉल में रखा गया है। वहीं 21 दिसंबर को माउंट आबू स्थित पांडव भवन, ज्ञान सरोवर, ग्लोबल हॉस्पिटल, म्यूजियम की यात्रा करते हुए 22 सितंबर की सुबह 10 बजे आबू रोड स्थित मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार किया जाएगा। पार्थिव शरीर शांतिवन आने पर संस्थान प्रमुख राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी, संयुक्त मुख्य प्रशासिका बीके मुन्नी, बीके शशि, अतिरिक्त महासचिव बीके बृजमोहन, मीडिया प्रमुख बीके करुणा, कार्यकारी सचिव बीके मृत्युंजय, अमेरिका से आयी बीके गायत्री समेत हजारों लोगों ने पुष्पांजलि अर्पित की।

  • बीके करूणा भाई ने दी जानकारी…

मीडिया निदेशक बीके करुणा भाई ने बताया कि बीके निर्वैर भाई के फेफड़ों में इन्फेक्शन होने पर 5-6 दिन पहले उनको अहमदाबाद के अपोलो हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था, जहां पर गुरुवार रात में अचानक अटैक आने से निधन हो गया। उनके निधन की सूचना मिलते ही देशभर से संस्थान के वरिष्ठ ब्रह्माकुमार भाई-बहनों का शांतिवन पहुंचना शुरू हो गया है।

  • पंजाब के गुरदासपुर में हुआ था उनका जन्म…

पंजाब के गुरदासपुर में 20 नवंबर 1938 को अकाली परिवार जन्मे बीके निर्वैर भाई का बचपन से ही धर्म-अध्यात्म के प्रति विशेष लगाव था। एक वर्ष की उम्र में ही आपके जीवन से माँ का साया उठ गया। इसके बाद भाईयों ने परवरिश की। होश संभाला भी नहीं था कि नौ वर्ष की उम्र में 15 अगस्त, 1947 में देश की आजादी की ख़बर सुनी और पिता भी पुराने शरीर से मुक्त होकर इस दुनिया से विदा हो गए। तीन भाइयों में सबसे छोटे राजयोगी निर्वैर भाई के पालन-पोषण में किसी भी तरह की कोई कमी नहीं आयी और भाइयों ने माता-पिता का प्यार देकर बड़ा किया। उनका जन्म भले ही अकाली परिवार में हुआ परन्तु उनके जीवन का झुकाव आध्यात्मिकता के प्रति लगातार बढ़ता रहा।

  • पुस्तकों ने जीवन को दिया नया आयाम

राजयोगी निर्वैर के बड़े भाई की घर में ही बड़ी लाइब्रेरी थी। उनके बड़े भाई उन्हें पढ़ने के लिए ज्ञानवर्धक किताबें दिया करते थे परन्तु इनका मन स्वामी रामतीर्थ की किताबें पढ़कर ही तृप्त हो जाता था। हाई स्कूल की पढ़ाई के दौरान स्वामी विवेकानंद की किताबों से ज्यादा लगाव बढ़ गया। इस पर उन्होंने स्वामी विवेकानंद के बताए चार प्रकार के योग को बड़ी बारीकी से प्रातः काल अभ्यास करते थे।

  • कुछ इस तहर से जीवन पथ पर बढ़ाया कदम…

आपकी स्कूली शिक्षा बोर्डिंग में रहकर हुई। सन् 1953 में शिक्षण के दौरान उन्हें स्कूल घोड़े और साइकिल से जाना बेहद पसन्द था। इनका स्वभाव अन्य लड़कों से स्वभाव बिल्कुल अलग था। जल्दी सो जाना और जल्दी उठना बचपन से ही आदतों में शुमार था। 16 वर्ष की उम्र में नेवी में इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर पद के लिए चयन हो गया और इन्टेसिव के लिए विशाखापट्नम चले गए। सन् 1955 में कुछ महीने रहने के बाद फिर वे लोनावाला चले गए और वहाँ डेढ़ वर्ष तक रहकर पानी के जहाज में हर तरह की ट्रेनिंग ली। इसके बाद गुजरात के जामनगर में ट्रांसफर हो गया। जामनगर में रहकर प्रशिक्षण लेते रहे और इन्टेसिव पूरी हो गई। जहाज में ही रडार से लेकर सारी चीजों का बारीकी से प्रशिक्षण लेकर इलेक्ट्रॉनिक के क्षेत्र में पारंगत हो गए थे।

  • इस तरह जीवन ने बदली करवट…

वर्ष 1959 की बात है। पंजाब में ब्रह्माकुमारीज़ सेवाकेंद्र की शुरुआत हुई। अध्यात्म और योग में रुचि होने के कारण आप संस्थान से जुड़ गए और नियमित रूप से आध्यात्मिक सत्संग में भाग लेने लगे। लेकिन माउंट आबू में वर्ष 1960 में ब्रह्मा बाबा से मिलने के बाद आपके जीवन की दिशा बदल गई। तभी आपने निश्चय कर लिया कि अब पूरा जीवन समाजसेवा और विश्व कल्याण के लिए समर्पित करना है। इसके बाद आपने भारतीय नौसेवा से इस्तीफा देकर माउंट आबू आए और यहीं के होकर रह गए।

  • गंभीर व्यक्तित्व के थे धनी…

सेवा के प्रति लगन, समर्पण और तीक्ष्ण बुद्धि के चलते कुछ ही समय में ब्रह्मा बाबा ने आपको महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी। इस तरह आपको जीवन में जो भी जिम्मेदारी मिली उसे पूरे मनोभाव और लगन से निभाया। सेवा-साधना के पथ पर आगे बढ़ते हुए आप संस्थान के महासचिव बने। आपके समर्पण भाव का ही कमाल है कि ब्रह्माकुमारीज़ में मुख्य पदों पर नारी शक्ति होने के बाद भी आपको संस्थान की अहम जिम्मेदारी सौंपी गई। आपके दिशा-निर्देश और मार्गदर्शन में देश-विदेश में बड़े स्तर पर सेवाओं को नया आयाम दिया गया। आप गंभीर स्वभाव के धनी थे। कोई भी ब्रह्माकुमार भाई-बहनें आपके पास किसी तरह की समस्या लेकर जाते तो आप उसका उचित रूप से समाधान देते थे।

  • संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित सम्मेलन में लिया भाग…

वर्ष 1982 में बीके निर्वैर भाई ने संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित निरस्त्रीकरण (SSOD) पर दूसरे विशेष सत्र में विश्व विद्यालय का प्रतिनिधित्व किया। जहां उन्होंने आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव जेवियर पेरेज़ डी कुएलर और अन्य गणमान्य व्यक्तियों से मुलाकात की। इसके अलावा मुख्यालय शांतिवन में हर वर्ष होने वाली राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों की अध्यक्षता की।

  • विभिन्न पुरस्कारों से नवाजा गया…

  • वर्ष 1999 में इंटरनेशनल पेंगुइन पब्लिशिंग हाउस द्वारा ‘राइजिंग पर्सनालिटीज ऑफ इंडिया अवॉर्ड
  • वर्ष 2001 में गुजरात के राज्यपाल द्वारा गुजरात गौरव पुरस्कार के तहत ‘मोरारजी देसाई शांति शिक्षा अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया।
  • इसके अलावा समय प्रति समय कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा आपको सम्मानित किया गया।
  • मुख्यालय के मैनेजमेंट में रही अहम भूमिका…

वर्ष 1974 से लेकर आज तक ब्रह्माकुमारीज़ के मुख्यालय के शांतिवन परिसर, मनमोहिनीवन, आनंद सरोवर, मान सरोवर, ज्ञान सरोवर के निर्माण से लेकर मैनेजमेंट में आपकी अहम भूमिका रही। आपके कुशल मार्गदर्शन में अनेक ऐतिहासिक कार्य किए गए।

  • ग्लोबल हॉस्पिटल के ट्रस्टी थे आप…

ग्लोबल हॉस्पिटल की स्थापना और संचालन में आपने शुरू से अब तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आप हॉस्पिटल के मुख्य ट्रस्टी थे। साथ ही आपके ही मार्गदर्शन में 50 एकड़ में बनने वाले ग्लोबल मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल का हाल ही में भूमिपूजन किया गया था।

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